Goru Singh Garhwal

From Jatland Wiki
(Redirected from Goru Ram Katrathal)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Goru Singh Garhwal (born:1895), from village Katrathal (Dist:Sikar Rajasthan, was a leading Freedom Fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan.

जीवन परिचय

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....चौधरी गौरूसिंह जी कटराथल - [पृ.309]: सीकर की ठिकाना शाही सत्ता जब जाटों के आंदोलन से घबरा उठी तो उसने सभाओं पर दफा-144 लगा दी। उस समय कानून भंग करने का जाट नेताओं ने एक उपाय सोचा और वह यह है कि पुरुषों की सभाएं न करके स्त्रियों की की जाय। लगभग 10000 स्त्रियों ने उस कांफ्रेंस में भाग लिया जिसकी सभापति श्रीमती उत्तमा देवी (स्वर्गीय पत्नी ठाकुर देशराज) और स्वागताध्यक्ष श्रीमती किशोरी देवी जी (धर्मपत्नी सरदार हरलाल) थी।

जहां के लोगों ने हिम्मत करके और पुलिस की मार खाकर भी इस कांफ्रेंस को सफल बनाया वह गांव कटराथल के नाम से मशहूर है। यही के चौधरी खुमानाराम के पुत्र चौधरी गोरु राम जी हैं। आप सीकर महायज्ञ के समय यज्ञ-रक्षकगण बनाए गए थे। यज्ञ के समाप्त ही आपको गिरफ्तार कर लिया गया। आप गिरफ्तारी से डरने वाले आदमी नहीं है। आप सीकर वाटी जाट पंचायत के मंत्री रहे हैं। आप के तीन लड़के हैं: 1. ओमप्रकाश, 2. रामचंद्र और 3. ब्रहभान जी ।

आपका जन्म संवत 1952 में श्रावण बदी 2 को हुआ था। आप मिजाज के गर्म और मजबूत आदमी हैं।

सीकर में जागीरी दमन

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।

उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।

उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन


[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।

अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।

तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।

और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।

उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब


[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।

इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।

ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।

लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।

23 अगस्त 1934 का समझौता (तसफिया नामा)

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है .... यह तसफिया नामा आज 23 अगस्त 1934 को मुकाम सीकर इस गर्ज से तहरीर हुआ कि सीकर और जाटान सीकर के देरीना झगड़े का खात्मा किया जाए।

सीकर की जानिब से ए. डब्ल्यू. टी. वेब ऐस्क्वायर सीनियर ऑफिसर सीकर, दीवान बालाबक्स, रेवेन्यू अफसर और मेजर मलिक मोहम्मद हुसैन खान अफसर इंचार्ज पुलिस, किशोर सिंह, मंगलचंद मेहता और विश्वंभर प्रसाद सुपी: कस्टम।


[पृ.268]

जाटान की तरफ से

मंदरजे जेर बातें दोनों फरीको ने मंजूर की और जाट पंचायत ने यह समझ लिया है कि यह फैसला जब जरिए रोबकारे जारी किया जाएगा तमाम जाटान सीकर इसकी पूरी पाबंदी करेंगे। अलावा इसके उन्होंने उस अमल का इकरार किया है कि उस फैसले के बाद जो जरिए हाजा किया जाता है आइंदा कोई एजीटेशन नहीं होगा और वह एजीटेशन को बंद करते हैं।

1. लगान

() संवत 1990 का बकाया लगान 30 दिन के अंदर अदा किया जाएगा अगर कोई काश्तकार अपना कुछ भी बकाया लगान फौरन अदा करने में वाकई नाकाबिल है तो वह एक दरख्वास्त इस अमल की पेश करेगा कि इसके मुझे इस कदर मुतालबा दे और इसकी वसूली मुनासिब सरायल पर एक या ज्यादा साल में फरमापी जावे। राज ऐसी दरख्वास्तों को, जो वाकई सच्ची होंगी, वह उस पर गौर करेगा और उनसे बकाया रकम पर सूद नहीं लेगा अगर बकाया 20 दिन के अंदर तारीख इजराय नोटिस जेर फिकरा हजा से जमा करा दी जावेगी तो सूद माफ किया जाएगा।

(बी) बकाया लगान संवत 1990 का हिसाब लगाते वक्त जो कभी जेरे ऐलान मुवरखा 15 जुलाई 1934 को दी जानी मंजूर की गई है यह मुजरा दी जावेगी। जिन काश्तकारान ने जेर ऐलान जायद अदा कर दिया है जावेद


[पृ.269]: अदा सुदा रकम उनको उसी सूद के साथ वापस की जाएगी कि जिस शरह से कि उनसे सूद लिया जाता है।

(सी) आइंदा के लिए यह हरएक काश्तकार की मर्जी पर होगी कि वह बटाई देवे या लगान मौजूदा शरह से। बटाई का हिसाब हस्ब जेल होगा।

(i) हर साल कम अज कम 75 फ़ीसदी जमीन का रकबा कास्त हरएक काश्तकार को करना होगा।
(ii) रकबा काश्त की पैदावार में से आधा हिस्सा अनाज और तिहाई हिस्सा तरीका बतौर बटाई लेवेगा। रब्बा जो कास्ट नहीं किया जाएगा उस पर हर साल दो ने फी बीघा हिसाब से नकद लिया जाएगा।
2. जेल

जेल सीकर की तरतीब की जाकर बाकायदा बनाई जाएगी और आइंदा मेडिकल अफसर या जुडिशल अफसर के चार्ज में रहेगी। जेल पुलिस अफसर के चार्ज में नहीं रहेगी

3. बेगार

जैसा की ऐलान किया गया है तमाम बेगार बंद की जाती हैं। कसबात में किराए पर बैलगाड़ी और ऊंट चलाने के लिए लाइसेंस असली कीमत पर दिया जाएगा। देहात में अगर राज के मुलाजिम को वार वरदारी की जरूरत होगी वह इंडेंट मेहता को दे देगा जो वारवारदारी का इंतजाम करेगा और काश्तकार को एक याददाश्त पर्छ दिया जाएगा जिसमें दर्ज किया जावेगा कि काश्तकार इस कदर फासले पर ले जाना है। बारबरदारी को शरह किराया वही होगी जो अब


[पृ.270]: राज्य में है मगर खाली वापसी सफर की सूरत में किराएदार को निशंक किराया दिया जावेगा।

4. सीकर दफ्तर की तहरीरात किस जबान में हो

आइंदा से दफ्तर सीकर की जबान हिंदी मुकर्रर की जाती है।

5. अंदरुनी जकात

जो अस आय इलाके सीकर के अंदर एक देहात से दूसरे देहात में ले जाई जावे उन पर आइंदा से जकात नहीं ली जाएगी। घी और तंबाकू पर जकात आइंदा से खुर्दा फ़रोसों से ली जावेगी जिनको लाइसेंस हासिल करने होंगे। जिनके कवायद मुर्त्तिव किए जाएंगे।

मुंदरजा वाला से मौजूदा आइंदा कायम होने वाली म्युनिसिपल कमेटियों के हदूद दरबारे लगान चुंगी उन चीजों पर कि जो उनके म्युनिसिपल हदूद के अंदर आवे कोई असर नहीं होगा।

6. लाग बाग

सब लालबाग जो जमीन के कर की परिभाषा में नहीं आती है हटा दी जाएंगी।

7. जमीन पर हकूक

बंदोबस्त के समय जयपुर के टेनेंसी एक्ट के अनुसार जमीन पर किसानों के मौरूसी हक़ होंगे।

8. पंचायत स्वीकृत संस्था

लगान तय करते समय बंदोबस्त में जाट पंचायत से सलाह ली जाएगी।


[पृ.271]

9. मंत्री रिहा

पंचायत के मंत्री ठाकुर देवी सिंह जी बोचल्या को बिना शर्त छोड़ दिया जाएगा।

इस फैसले का प्रभाव: जाटों और ठिकाने के बीच यह जो फैसला हुआ समाचार पत्रों ने प्रसन्नता प्रकट की और दोनों पक्षों को इसे निभाने की सलाह दी। यहां तक हिंदी के कुछ समाचार पत्रों के अग्रलेख और टिप्पणियां देते हैं।

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह[4] लिखते हैं कि [पृष्ठ-113]: सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने हमारे गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

चैत्र सुदी प्रथमा को संवत बदल गया और विक्रम संवत 1992 प्रारम्भ हो गया। सीकर ठिकाने के जाटों ने लगान बंदी की घोषणा करदी, जबरदस्ती लगान वसूली शुरू की। पहले भैरुपुरा गए। मर्द गाँव खाली कर गए और चौधरी ईश्वरसिंह भामू की धर्मपत्नी जो चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथना की बहिन थी, ने ग्राम की महिलाओं को इकट्ठा करके सामना किया तो कैप्टेन वेब ने लगान वसूली रोकदी। चौधरी बक्साराम महरिया ने ठिकाने को समाचार भिजवा दिया कि हम कूदन में लगान वसूली करवा लेंगे।

कूदन ग्राम के पुरुष तो गाँव खाली कर गए। लगान वसूली कर्मचारी ग्राम कूदन की धर्मशाला में आकर ठहर गए। महिलाओं की नेता धापू देवी बनी जिसका पीहर ग्राम रसीदपुरा में फांडन गोत्र था। उसके दाँत टूट गए थे, इसलिए उसे बोखली बड़िया (ताई) कहते थे। महिलाओं ने काँटेदार झाड़ियाँ लेकर लगान वसूली करने वाले सीकर ठिकाने के कर्मचारियों पर आक्रमण कर दिया, अत: वे धर्मशाला के पिछवाड़े से कूदकर गाँव के बाहर ग्राम अजीतपुरा खेड़ा में भाग गए। कर्मचारियों की रक्षा के लिए पुलिस फोर्स भी आ गई। ग्राम गोठड़ा भूकरान के भूकर एवं अजीतपुरा के पिलानिया जाटों ने पुलिस का सामना किया। गोठड़ा गोली कांड हुआ और चार जने वहीं शहीद हो गए। इस गोली कांड के बाद पुलिस ने गाँव में प्रवेश किया और चौधरी कालुराम सुंडा उर्फ कालु बाबा की हवेली , तमाम मिट्टी के बर्तन, चूल्हा-चक्की सब तोड़ दिये। पूरे गाँव में पुरुष नाम की चिड़िया भी नहीं रही सिवाय राजपूत, ब्राह्मण, नाई व महाजन परिवार के। नाथाराम महरिया के अलावा तमाम जाटों ने ग्राम छोड़ कर भागे और जान बचाई।


[पृष्ठ-114]: कूदन के बाद ग्राम गोठड़ा भूकरान में लगान वसूली के लिए सीकर ठिकाने के कर्मचारी पुलिस के साथ गए और श्री पृथ्वीसिंह भूकर गोठड़ा के पिताजी श्री रामबक्स भूकर को पकड़ कर ले आए। उनके दोनों पैरों में रस्से बांधकर उन्हें (जिस जोहड़ में आज माध्यमिक विद्यालय है) जोहड़े में घसीटा, पीठ लहूलुहान हो गई। चौधरी रामबक्स जी ने कहा कि मरना मंजूर है परंतु हाथ से लगान नहीं दूंगा। उनकी हवेली लूट ली गई , हवेली से पाँच सौ मन ग्वार लूटकर ठिकाने वाले ले गए।

कूदन के बाद जाट एजीटेशन के पंचों – चौधरी हरीसिंह बुरड़क, पलथना, चौधरी ईश्वरसिंह भामु, भैरूंपुरा; पृथ्वी सिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; चौधरी पन्ने सिंह बाटड़, बाटड़ानाऊ; एवं चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल (मंत्री) कटराथल – को गिरफ्तार करके देवगढ़ किले मैं कैद कर दिया। इस कांड के बाद कई गांवों के चुनिन्दा लोगों को देश निकाला (ठिकाना बदर) कर दिया। मेरे पिताजी चौधरी गनपत सिंह को ठिकाना बदर कर दिया गया। वे हटूँड़ी (अजमेर) में हरिभाऊ उपाध्याय के निवास पर रहे। मई 1935 में उन्हें ठिकाने से निकाला गया और 29 फरवरी, 1936 को रिहा किया गया।

जब सभी पाँच पंचों को नजरबंद कर दिया गया तो पाँच नए पंच और चुने गए – चौधरी गणेशराम महरिया, कूदन; चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथाना; चौधरी जवाहर सिंह मावलिया, चन्दपुरा; चौधरी पन्नेसिंह जाखड़; कोलिडा तथा चौधरी लेखराम डोटासरा, कसवाली। खजांची चौधरी हरदेवसिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; थे एवं कार्यकारी मंत्री चौधरी देवीसिंह बोचलिया, कंवरपुरा (फुलेरा तहसील) थे। उक्त पांचों को भी पकड़कर देवगढ़ किले में ही नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद पाँच पंच फिर चुने गए – चौधरी कालु राम सुंडा, कूदन; चौधरी मनसा राम थालोड़, नारसरा; चौधरी हरजीराम गढ़वाल, माधोपुरा (लक्ष्मणगढ़); मास्टर कन्हैयालाल महला, स्वरुपसर एवं चौधरी चूनाराम ढाका , फतेहपुरा

गोरुसिंह गढ़वाल कटराथल का जीवन परिचय

गोरुसिंह गढ़वाल सीकर के निकट गाँव कटराथल के रहने वाले थे.

रणमल सिंह[5] लिखते हैं कि सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने कटराथल गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[6] सीकरवाटी के पांच मुखियाओं में से वे एक थे. वे केवल साक्षर ही थे लेकिन स्वाध्याय से लिखने पढ़ने में माहिर हो गए थे. सन 1934 में प्रजापति महायज्ञ से ही सीकर में जन-जागरण का प्रारंभ हुआ था. इसे ज्वाला का रूप देने वाले गोरुसिंह ही थे. यह माना जाता है कि प्रजापति-यज्ञ को सम्पूर्ण करवाने का बीड़ा गोरूसिंह ने ही उठाया था. गोरूसिंह की निडरता, निर्भीकता, स्पष्टवादिता का सभी सम्मान करते थे. उन्होंने सीकर महायज्ञ की रक्षा के लिए स्वयंसेवकों की सेना बनाई थी और उन्हें आत्मरक्षा के लिए हाथों में लाठियां थमा दी थी. यज्ञ एक सप्ताह चला था. राजा के कारिंदों ने भरसक प्रयास किया ताकि यज्ञ पूरा न हो. खूब विघ्न डालने का षडयंत्र रचा. लेकिन गोरु सिंह का संकल्प और साहस वे कम नहीं कर पाए. न केवल यज्ञ पूर्व हुआ बल्कि हाथी के साथ जुलुस भी निकला गया. गोरु सिंह प्रत्येक आन्दोलन में अगली पंक्ति में थे.[7]

महिला शक्ति को बढ़ावा

महिला शक्ति को आगे लाने और शिक्षित बनाने में गोरूसिंह का प्रभावी योगदान रहा. उन्ही के सहयोग और पृथ्वीसिंह के नेतृत्व के कारण कटराथल गाँव में प्रथम महिला सम्मलेन 24 अप्रेल 1934 को संपन्न हुआ. इसमें पांच हजार महिलाओं ने भाग लिया. शेखावाटी अंचल आज महिला शिक्षा में अग्रणी है , तो इसके पीछे गोरु सिंह के प्रयास थे जो लगभग आठ दशक पूर्व शुरू किये गए थे. तत्कालीन अभावों में जूझते समाज में यह गोरू सिंह की ऐतिहासिक देन थी. [8]

24 दिसंबर 1934 का अध्यादेश

सीकर ठिकाने में आन्दोलन होने लगे और किसानों ने लगान देना बंद कर दिया तब 24 दिसंबर 1934 ई. को जयपुर सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया जिससे लगान देने से रोकने की कार्यवाही पर रोक लग गयी. इस क़ानून से सीकर ठिकाने के प्रशासन को और कड़े अधिकार मिल गए तथा उनका हाथ मजबूत हो गया. 31 जनवरी 1935 ई. को जुडिसियल आफिसर, रेवेन्यु मेंबर और पुलिस इंचार्ज के साथ सीकर ठिकाने की सशस्त्र पुलिस ने सीकर जाट पंचायत के सदस्यों के साथ 16 मुख्य जाट नेताओं को, जिनमें हरी सिंह, ईश्वर सिंह, पृथ्वी सिंह, गोरू सिंह, पन्ने सिंह, गणेश राम, सूरज सिंह, तेजा सिंह, गंगा सिंह आदि प्रमुख थे, किसानों को लगान न देने के लिए भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.[9] इन गिरफ्तारियों पर किसानों में भारी असंतोष फैला और आस-पास के गाँवों से हजारों की संख्या में किसान सीकर पहुँच गए और उन्होंने सीकर प्रशासक मि. ए. डब्ल्यू. टी. वेब के बंगले को चारों और से घेर लिया और अपने नेताओं की रिहाई की मांग की एवं साथ ही पंचपाना शेखावाटी ठिकानों की तरह चार आना प्रति रूपया लगान में भी माफ़ी की मांग की. [10] [11]

जाटों ने सीकर दिवस मनाया

ठाकुर देशराज[12] ने लिखा है....26 मई 1935 को अखिल भारतीय जाट महासभा के आदेशों से भारत भर में जाटों ने सीकर दिवस मनाया। जगह-जगह सभाएं की गई, जुलूस निकाले गए। महासभा के तत्कालीन मंत्री झम्मन सिंह जी एडवोकेट ने एक प्रेस वक्तव्य द्वारा सीकर के दमन की निंदा की।

11 मई 1935 को जाट महासभा का अधिवेशन रायबहादुर चौधरी सर छोटूराम जी की अध्यक्षता में जयपुर काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट सर बीचम साहब से मिला और उसने सीकर कांड की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की।

सर जौंस बीचम एक गर्वीले अंग्रेज थे उन्होंने यह तो माना की सीकर की घटनाएं खेद जनक है और उन्हें सुधारा जाएगा किंतु जांच कराने से साफ इंकार कर दिया और जाट डेपुटेशन को भी सीकर जाकर जांच करने की इजाजत नहीं दी।

जाट डेपुटेशन जयपुर से लौट गया और दमन में कोई कमी नहीं हुई। सीकर में त्राहि-त्राहि मच गई। कुँवर पृथ्वी सिंह गोठड़ा और गणेशराम कूदन, गोरु राम कटराथल बाहर के जाटों के पास दौड़-दौड़ कर जा रहे थे। इन लोगों के सीकर में


[पृ.293]: वारंट थे और पुलिस चाहती थी कि यह हाथ लग जाए तो इन्हें पीस दिया जाए। अंत में दमन का मुकाबला करने के लिए यह सोचा गया कि जयपुर राजधानी में सत्याग्रह किया जाए। पहले तो एक डेपुटेशन मिले, जो यह कह दे या तो जयपुर हमारे जान माल की गारंटी दे वरना हम मरेंगे तो गांवों में क्यों मरे जयपुर आकर यहां गोलियां खाएंगे। सत्याग्रह के लिए कुछ जत्थे बाहर से भी तैयार किए गए।

इधर जून के प्रथम सप्ताह कुंवर रतन सिंह, ईश्वर सिंह, धन्नाराम ढाका, गणेश राम, ठाकुर देशराज जी आदि मुंबई गए। वहां मुंबई में श्री निरंजन शर्मा अजीत और देशी राज्यों के आदी अधिदेवता अमृत लाल जी सेठ के प्रयतन से मुंबई के तमाम पत्रों में सीकर के लिए ज़ोरों का आंदोलन आरंभ हो गया और कई मीटिंग में भी हुई, जिनमें सीकर की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। मुंबई के बड़े से बड़े लीडर श्री नरीमान, जमुनादास महता आदि ने सीकर के संबंध में अपनी शक्ति लगाने का विश्वास दिलाया।

आखिरकार जयपुर को हार झक मारकर झुकना पड़ा और उसने सीकर के मामले में हस्तक्षेप किया। अनिश्चित समय के लिए राव राजा साहब सीकर को ठिकाने से अलग रहने की सलाह दी गई। गिरफ्तार हुए लोगों को छोड़ा गया। जिनके वांट थे रद्द किए गए। किंतु जाटों की नष्ट की हुई संपत्ति का कोई मुआवजा नहीं मिला और न उन लोगों के परिवारों को कोई सहायता दी गई जिनके आदमी मारे गए थे। इस प्रकार इस नाटक का अंत सीकर के राव राजा और दोनों को सुख के रूप में नहीं हुआ। किंतु यह अवश्य है कि सीकर के जाट को नवजीवन दे दिया।

पाठ्यपुस्तकों में स्थान

शेखावाटी किसान आंदोलन ने पाठ्यपुस्तकों में स्थान बनाया है। (भारत का इतिहास, कक्षा-12, रा.बोर्ड, 2017)। विवरण इस प्रकार है: .... सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा-144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओं का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। जिनमें श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलांदेवी, श्रीमती रमा देवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख थी। 25 अप्रैल 1935 को राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कूदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी दादी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई गई जिसमें 4 किसान चेतराम, टीकूराम, तुलसाराम तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ्तार किया गया। हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी। जून 1935 में हाउस ऑफ कॉमंस में प्रश्न पूछा गया तो जयपुर के महाराजा पर मध्यस्थता के लिए दवा बढ़ा और जागीरदार को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। 1935 ई के अंत तक किसानों के अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई। आंदोलन नेत्रत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में थे- सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह गौरीर, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, पन्ने सिंह बाटड़ानाउ, हरु सिंह पलथाना, गौरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, लेख राम कसवाली आदि शामिल थे। [13]

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.309
  2. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230
  3. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.267-271
  4. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113-114
  5. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113
  6. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
  7. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 86-87
  8. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 87
  9. दी स्टेट्समेन दिनांक 16 फरवरी 1935
  10. दी स्टेट्समेन दिनांक 16 फरवरी 1935
  11. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.113
  12. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949,p.292-93
  13. भारत का इतिहास कक्षा 12, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, 2017, लेखक गण: शिवकुमार मिश्रा, बलवीर चौधरी, अनूप कुमार माथुर, संजय श्रीवास्तव, अरविंद भास्कर, p.155

Back to Jat Jan Sewak/The Freedom Fighters